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दो दिलों की प्यास का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता.दो दिल एक दुसरे को जानते भी नहीं थे लेकिन आज उनमे इतना प्यार कैसे हो गया इसका किसी को पता भी न चला. दिन ढलता गया; शाम सूरज को अपनी बाहों में सुलाने की कोसिस करती रही.
ऊषा एक छोटे से गाँव से शहर पढने के लिए आई थी.बारहवीं की पढाई के साथ-साथ छोटी बहन के साथ खुद को ब्यस्त रखना उसकी आदत बन गयी थी.
उसी के साथ एक लड़का भी पढ़ता था,उसके मम्मी-पापा ने उसे प्रेम नाम दिया. जो उसके बगल वाले कमरे में रहता था.वो बहुत ही साधारण,सीधा और लोगों की नजर में सज्जन भी था. वो ऊषा की पढाई में मदद करता.बचपन से ही माँ-बाप से दूर रहना उसे हमेशा तकलीफ देता था लेकिन जब से ऊषा उसके पास रहने लगी तब से उसे कुछ अपनापन सा लगने लगा था.
दोनों बारहवीं की पढाई पूरी कर के इंजीनियरिंग करने की सोच रहे थे.समय के साथ दोनों दूर हो गये.अब दोनों में कोई बातचीत नही हो रही थी.दोनों कोचिंग करने एक दुसरे से दूर चले गये थे.फिर भी प्रेम के मन में ऊषा कहीं न कहीं घर कर गयी थी.
होली का सुहाना मौसम आया.ऊषा अपनी छोटी बहन से मिलने आई.वहां के लोग उसको बहुत प्यार भरी निगाहों से देख रहे थे ऐसा लग रहा था मानो स्वर्ग से भगवान् आये हों.वहीँ पर एक अधेड़ उम्र के ब्यक्ति ने जबरजस्ती ऊषा के ऊपर रंग डाल दिया ये उसकी छोटी बहन को बिलकुल अच्चा नहीं लगा.इसलिए वो रोने लगी और नाराजगी जताते हुए उसने भी अंकल के उपर रंग डाल दिया.
कुछ ही समय बाद पता चला कि ऊषा और प्रेम का इंजीनियरिंग में चयन हो गया.फिर दोनों को ये बिलकुल पता नही था.एक दिन ऊषा दुबारा उसी जगह आई जहाँ दोनों कभी रहा करते थे.वहां उसे प्रेम के भाई ने प्रेम का मोबाइल नंबर दिया.
प्रेम के मोबाइल पर जब कॉल आई और ऊषा की आवाज सुना तो ऐसा लगा जैसे बरसों खोया हुआ प्यार फिर मिल गया.अब प्रेम को पूरा विश्वास हो गया था की उसके नाम कि तरह कोई नयी प्रेम कहानी बनने वाली है.
मैसेज पर मैसेज और फिर धीरे-धीरे कॉल पर कॉल.ऐसे लग रहा था कि जैसे समंदर में पानी कि बाढ़ आ गयी हो.
अंत में प्रेम ने अपना प्रेम पत्र पढ़ कर ऊषा को सुना ही दिया.ऊषा न न करते हुए उसके प्यार के फंस ही गयी.उसने रात भर सोचने का वक़्त माँगा. और दूसरे दिन अपने माँ के पास चली गयी.
प्रेम को रात भर नीद नही आई वो सिर्फ ये सोचता रहा कि पता नही सुबह की किरण क्या संदेसा लाएगी.
इधर ऊषा को ऐसा लग रहा था कि जैसे प्रेम ने उसके साथ कोई मजाक किया हो.उसने दुबारा पूछा कि प्रेम क्या वाकई उसे प्यार करता है???
जब उसने प्रेम से ये बताया कि कोई है जो उसे प्रेम से भी ज्यादा प्यार करता है जो कि अभी इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के बाद मिला है तो प्रेम के सारे सपने धरे के धरे रह गये.फिर भी प्रेम ने हिम्मत नही हारी.
छह महीने बीत गये फिर भी प्रेम ऊषा का इंतज़ार कर रहा था.
एक दिन अचानक उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया:
“” i have a heart ‘n’ that is true,
but now it has gone from me to you.
so,care for it just like i do,
because i have no heart ‘n’ you have two.”
बस फिर क्या था प्रेम ने अपने प्रेम ह्रदय की प्रेम पिपासा को ऊषा के सामने रख दिया.
तमाम कोसिसों के बाद वो अपने प्यार को पा ही गया.
मुरझाये पुष्प में दुबारा जान आ गयी.दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करने लगे.सबसे बड़ी बात तो ये कि ऊषा आज भी अपनी छोटी बहन के पास ही है और उसे भी पढाई में सहायता करती है.लेकिन प्रेम ने उसे जीवन में सच्चे प्रेम का ऐसा अहसास करा दिया कि उससे बिना बात किये ऊषा का रह पाना भी दूभर हो जाता है.
सच कहूँ या फ़साना इसे,
पागल कहूँ या दीवाना उसे.
जिसने प्यार सिखाया वो खुद गिर गया;
कुछ ऐसे किया वो परवाना उसे…
By:
“Loving Heart”
Pawan Kumar Tiwari
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